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प्रयोजन

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  नेत्र है पर सूरदास देख पाते हैं नहीं, मोह या सम्मोहनो के बीच फस जाते कहीं। सत्य और असत्य की रेखा बनी है नीतियों में, क्या ग्रहण क्या प्रति ग्रहण करता तू अपने अनुभवों में, देकर से करता अप्रयोजित कर्म पथ के , नष्ट कर सकती तुझे यह कर्म धर्म और भावनाएं, जैसे मध्य जल भवन में डूब जाती है जहाजे, नेत्र हैं पर.............. Writing time-13/02/2021    10:12AM Place-khurai gurukul. Written by Gamer Sandesh

अटलता

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धरती अटल आकाश अटल पर मानव क्यों इतना भोला है अब मानव पर विश्वास रहा नहीं भाईचारा शर्तों में किंतु रहा वही यदि होता मानव चींटी सा…... तब भी ना करता पूर्ण कर्तव्यों को                           जाति धर्मो से लिंगो में बांट देता कर्मों को। यदि होता मानव कुत्ते सा......... तब भी ना करता सचेत वफादारों को,               घूस भ्रष्टाचारी खाकर पलने देता शैतानों को। यदि होता मानव पत्थर सा....... तब शिल्पकार सब मुक्त हुए,             क्योंकि छेनी की ठोकर से क्षणभंगुर में टूट गए। Writing time-01-01-2021 friday Written by Gamer Sandesh

सशक्त नारी सशक्त समाज

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           नारी शब्द स्त्री वाचक है ,जो स्त्री पर्याय का बोध कराता हैं।   इस संपूर्ण संसार में शायद ही कोई नारी के प्रेम रूपी सौंदर्य से अछूता रहा हो , मां की ममता से , बहन का प्यार से , पत्नी के सहयोग से.... कहीं ना कहीं से आंचलिक अनुभूति प्राप्त तो की ही होगी, और कहा भी जाता है कि "  हर कामयाब पुरुष   के पीछे किसी स्त्री का हाथ होता है "       बात भी सही है कहीं ना कहीं किसी न किसी रूप से महिला   (स्त्री पर्याय) सहायता करती ही है , अब चाहे आर्थिक हो या   मानसिक। यह तो सोचने की बात है , कि जिस समाज में स्त्री जाति का सरस्वती, गौरी, भवानी, देवी, आदि के रूप में सौंदर्य पूर्ण वर्णन किया गया हो , जहां पर देवियों  (पार्वती, काली)को देवताओं से अधिक ओजपूर्ण एवं शक्तिशाली बताया गया हो । वहां पर स्त्रियों की दुर्दशा कैसे हो सकती है ?   नहीं तो  वहां का समाज पुरुष प्रधान कैसे हो सक...

बाल चेष्टाएँ (बालक के मन की इच्छाएं)

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     वास्तविक मूल्यों पर देखा जाए तो, हम सभी कही न कही अपने अंदर पनपें हुए bacche की पुकार नही सुनते है।                      शायद हम अपने उस पल को भूल गए है या फिर unn यादों को अपने नियमों और शर्तों में बंध चुके है।                     और एक *दिखावे* की जिंदगी को पसंद करने लगे है । इन्ही बंधनों को खोलने के लिए ये लेख (बाल चेष्टाएँ) आपके लिए ही है।                      " कभी लगता है,की ये संसार,आकाश,धरती,समय सब कुछ मेरा ही तो है, जो भगवान जी ने मुझको और इस संसार के लोगो को दी है ,              परंतु उस पर नियंत्रण मात्र मेरा है; मेरे जागने पर ही सूरज आता है,मेरे साथ तो चांद भी चलता है, मैं यह बताता रहता हूं, पर वह समझते ही नहीं है लगता है कि भगवान जी भी यही चाहते हैं कि मैं यह राज स्वयं ही रखूं।       ...

हमारी शान शासन

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  हर साल सरकार का ये बहुत रोना होता है . "किसान अपनी खेती को लेकर बहुत परेशान है और आपने कर्ज को न चुका पाने के कारण वो आत्महत्या जैसे कदम उठाता है" या फिर ये की "आए दिन युवा पीढ़ी रोजगार की भूखी है और हर जगह अपराध बढ़ रहे है "        लेकिन नेता जी के पास न जाने कोन सा चश्मा है जो कुछ को कुछ दिखाती है । लेकिन ये बात है की हमारे नेता या   विधायक  बहुत काम करते है । पार्क बहुत है हमारे यहां पर पार्क से ज्यादा बनाने वालो का नाम अंकित है जैसे ये उनकी ओर से दान हो और सभी खुशी खुशी इसे अपनाते है ।         मंच से जनता को भाई बहन बोल देने से उनके वोट fix to हो ही जाते है nhi to vote bank काम तो होना ही है।            पूरी जिंदगी निकल जनता की परेशानी को नेता जी तक पहुंचने और दिखाने में पर , न जाने कैसे चस्मे लगे है जो कुछ देखते ही नहीं  ।                    शायद ये कर सकती है सरकार     ...

सरकार का राज

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 वर्तमान समय में सरकार से पूछा जाए कि आप "JOBS" क्यों नही दे रहे हो तो उनका जवाब होगा की ' शासन के वित में धन नही है जिससे हम jobs nahi de पा रहे है।  अब मेरा एक question हैं की एक किसी परीक्षा का form भरने में कितने पैसे लगते है तो आप बोलेंगे की 1500 रुपये तो ले कर ही चलते है क्यों की कही कही तो 2000 रुपए भी लग जाते है । एक और question की जब फॉर्म भरे जाते है तो 10,000-12,000 लोग ही भरते है क्या ? नही , ऐसा नहीं है कम से कम वो आंकड़ा लाख़ तक तो छू जाता है । थोडा गणित लगा लेते है ठीक               =   फॉर्म भरने वाले  × भरने वाली फीस(अनुमान)               =    10,00,000 × 1000               =    10,00,00,00,000      Form to सभी ने भरे पर job तो 10,000 की लगी तो अब सरकार के पास पैसे नहीं है टीचर्स की फीस के लिए ? ...

Rang karam ka jivan

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रंगमंच का फ़साना अपना सच छुपा कर किसी और का दिखाना यही है रंगमंच का फ़साना l दिल में ग़म हो  तब भी हँसे जाना,  दिल में खुशी हो तब भी रो के दिखाना,  यही है रंगमंच का फ़साना l अपनी प्रेयसी को  किसी और की बताना,  खुद बड़े भाई का,  फ़र्ज़ निभाना,  यही है रंगमंच का फ़साना l मौलिक स्वरचित् ( *शुभी जैन* )