बाल चेष्टाएँ (बालक के मन की इच्छाएं)
वास्तविक मूल्यों पर देखा जाए तो, हम सभी कही न कही अपने अंदर पनपें हुए bacche की पुकार नही सुनते है।
शायद हम अपने उस पल को भूल गए है या फिर unn यादों को अपने नियमों और शर्तों में बंध चुके है।
और एक
*दिखावे* की जिंदगी को पसंद करने लगे है । इन्ही बंधनों को खोलने के लिए ये लेख
(बाल चेष्टाएँ) आपके लिए ही है।
" कभी लगता है,की ये संसार,आकाश,धरती,समय सब कुछ मेरा ही तो है, जो भगवान जी ने मुझको और इस संसार के लोगो को दी है ,
परंतु उस पर नियंत्रण मात्र मेरा है; मेरे जागने पर ही सूरज आता है,मेरे साथ तो चांद भी चलता है, मैं यह बताता रहता हूं, पर वह समझते ही नहीं है लगता है कि भगवान जी भी यही चाहते हैं कि मैं यह राज स्वयं ही रखूं।
मैं हमेशा मेरी क्षमता को बतलाता रहता हूं, पर मुझे बड़े लोग अति आश्चर्यजनक रूप से देखते और हंसते हैं, इसी पर मेरी तारीफ करते किंतु कक्षा का श्रेष्ठ विद्यार्थी तो मैं नहीं। कक्षा में शिक्षक
जो पढ़ाते हैं.
वह समझ नहीं आता है लेकिन पढ़ता हूं, हां थोड़ा-थोड़ा समझ लेता हूं, पर जब वह मुझको मारते हैं, तो मुझको कष्ट होता है। एक पल लगता है शिक्षक ने मुझे क्यों मारा? । मुझको भगवान से ऐसी शक्ति मांगनी चाहिए कि मैं कभी शिक्षक की मार ना खाऊं , पर क्या करूं भगवान जी भी कुछ बोलते ही नहीं,लेकिन कुछ समय बाद मैं सब कुछ भूल कर खेलने लगता हूं। "
" सरलता पूर्वक जीवन यापन या जीवन के निखार के लिए सत्य अनुभव आवश्यक है, और निखार के लिए वह प्रश्न भी ना करें तो वह ज्ञान अपूर्ण होगा " आसान भाषा में बालक जीवन का निखार उसकी कठिन परिस्थितियों से उभरने के पश्चात आता है और अनुभव से ही तो ज्ञान का बोध (ज्ञान) प्राप्त होता है ।
Write Date- Sunday-29/Nov/2020
time-11:04 PM
Written by sandesh saraf
Gamer Sandesh
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