प्रयोजन

 नेत्र है पर सूरदास देख पाते हैं नहीं,

मोह या सम्मोहनो के बीच फस जाते कहीं।


सत्य और असत्य की रेखा बनी है नीतियों में,

क्या ग्रहण क्या प्रति ग्रहण करता तू अपने अनुभवों में,

देकर से करता अप्रयोजित कर्म पथ के ,

नष्ट कर सकती तुझे यह कर्म धर्म और भावनाएं,

जैसे मध्य जल भवन में डूब जाती है जहाजे,


नेत्र हैं पर..............


Writing time-13/02/2021    10:12AM

Place-khurai gurukul.

Written by

Gamer Sandesh





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