Jo guzar raha vo samay

समय की परिभाषा :

" हमारे जीवन में  एक घटना से ले कर दूसरी घटना के बीच का अन्तराल समय कहलाता है "  






आग का गुण हैं जलाना 

धरती का गुण हैं बतान बसाना 

जल का गुण हैं निर्मल करना !!

और समय हर एक चीज के सापेक्ष हैं इसकी गणना का अनूठा चमत्कार हैं घड़ी  !

परंतु समय को एक मात्र ही घड़ी मान लिया जाता हैं ,

हमारे द्वारा घटी घटनाओं का अंतराल ही समय के रूप में विद्यमान हैं इस  प्रकार के समय की परिभाषा किन्ही दो प्रमुख घटनाओं के अंतराल को समय कहते है ।। 

परंतु जिस अज्ञात परम सत्ता के अधीन समय  है उसे ही ईश्वर की उपाधि प्रदान की गई हैं !

शायद यही विश्वास की लीला हैं , अगर विधाता का यही स्वरूप हैं ईश्वर के सहायक तत्व हैं ,जी क्योंकि उसे ज्ञात और परम तत्व और ईश्वरीय  स्वरों में बांधे हुए हैं ,अज्ञात हैं ,अन्यथा हमारे समक्ष विद्यमान हैं ,किंतु हमारी पंच इंद्रिय शक्तियों में वह काबिलियत नहीं है कि ,हम उस ईश्वर के  परम तत्व अज्ञात तत्वों को जान सके  ।

मेरे सूत्र से यदि  हम इस संबंध में पुष्टि की है तो तब उसकी गणना करना ,हमें सीमाओं में बांध देता है मेरा सूत्र है की सीमाओं की भी सीमाएं होती है जिस प्रकार यदि एक निश्चित दूरी से किसी दीवाल को देखने पर हम उसके पार नहीं  देख सकते हमें उस दीवार के पार देखने के लिए उस दीवाल को नाकना पड़ेगा ,पार करना पड़ेगा ,ठीक उसी प्रकार किसी तत्व के  अंतिम परम तत्व को जान लेना उस परम तत्व को समझने पर हम मंजिल प्राप्त करते है , कि उसके आगे भी उसके स्वरूप उसके निर्माण करने के लिए  अनेक तत्व जुड़े हुए हैं ,जैसे कि पूर्व में है माना जाता था कि शुभचिंतक वस्तु एवं अति सूक्ष्म वस्तु के मध्य का फासला तय करने के लिए हम सूक्ष्म में अणु  और और उससे लेकर परमाणु से लेकर न्यूटन, प्रोटॉन ,इलेक्ट्रॉनिक जिसको जान चुके हैं !



किंतु इसके आगे किसी न्यूट्रॉन इलेक्ट्रॉन के विषय में जाने पर ज्ञात होता है कि किसी प्रकार की विशेष तरंगों से  क्या प्राप्त होता है? क्या बनता है ? ठीक इसी प्रकार के  सूत्र के लिए सिद्ध  परिभाषित होता है की किसकी सीमाओं की सीमाएं होती हैं ! 

ठीक उसी प्रकार समय की भी रचना उस अज्ञात ईश्वरीय शक्ति पर निर्भर करती है ,शायद निर्भरता ही के कारण और आइंस्टीन की theory  के मुताबिक़ समय रेट है रिलेटेड रिलेटेड है जिसका मत करना विचार और मनुष्य की सोच पेपर है इसीलिए इसको दासता का भार लिए स्वामी को प्रसन्न कर सकता को चुनौती देने वाला भाग भाग पर विश्वास कर पुण्य और पाप को चोला पहने रहता है यही एक दूसरे हास  संतुलन का आधार है ।

Comments

Anonymous said…
Nice
Anonymous said…
pagal ho kya kuch bhi likhte ho ???

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